नज़रिया
"एक आदमी मेले में गुब्बारे बेच कर गुज़र-बसर करता था। उसके पास लाल, नीले, पीले, हरे और इसके अलावा कई रंगों के गुब्बारे थे। जब उसकी बिक्री कम होने लगती तो वह हीलियम गैस से भरा एक गुब्बारा हवा में उड़ा देता। बच्चे जब उस उड़ते गुब्बारे को देखते, तो वैसा ही गुब्बारा पाने के लिए आतुर हो उठते। वे उसके पास गुब्बारे "खरीदने के लिए पहुँच जाते, और उस आदमी की बिक्री फिर बढ़ने लगती। उस आदमी की बिक्री जब भी घटती, वह उसे बढ़ाने के लिए गुब्बारे उड़ाने का यही तरीका अपनाता। एक दिन गुब्बारे वाले को महसूस हुआ कि कोई उसके जैकेट को खींच रहा है। उसने पलट कर देखा तो वहाँ एक बच्चा खड़ा था। बच्चे ने उससे पूछा, “अगर आप हवा में किसी काले गुब्बारे को छोड़ें, तो क्या वह भी उड़ेगा?” बच्चे के इस सवाल ने गुब्बारे वाले के मन को छू लिया। बच्चे की ओर मुड़ कर उसने जवाब दिया, “बेटे, गुब्बारा अपने रंग की वजह से नहीं, बल्कि उसके अंदर भरी चीज़ की वजह से उड़ता है।
"हमारी ज़िंदगी में भी यही उसूल लागू होता है। अहम चीज़ हमारी अंदरूनी शख़्सियत है। हमारी अदंरूनी शख़्सियत की वजह से हमारा जो नज़रिया बनता है, वही हमें ऊपर उठाता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के विलियम जेम्स (William James) का कहना है, हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी खोज़ यह है कि इंसान अपना नज़रिया बदल कर अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकता है।"
"हमारी ज़िंदगी में भी यही उसूल लागू होता है। अहम चीज़ हमारी अंदरूनी शख़्सियत है। हमारी अदंरूनी शख़्सियत की वजह से हमारा जो नज़रिया बनता है, वही हमें ऊपर उठाता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय (Harvard University) के विलियम जेम्स (William James) का कहना है, हमारी पीढ़ी की सबसे बड़ी खोज़ यह है कि इंसान अपना नज़रिया बदल कर अपनी ज़िंदगी को बेहतर बना सकता है।"
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